Hyperpigmentation: मेलास्मा के संकेत हैं चेहरे व गर्दन पर होने वाले काले धब्बे, जानिए इस हाइपरपिग्मेंटेशन का आयुर्वेदिक उपचार


 

मेलास्मा के संकेत हैं चेहरे गर्दन पर होने वाले काले धब्बे

 

Hyperpigmentation :- मेलास्मा एक त्वचा संबंधी रोग है जिसमें त्वचा पर गहरे रंग के धब्बे या दाग बन जाते हैं। इन धब्बों का सबसे सामान्य स्थान चेहरे और गर्दन होता है। इसे "मेलास्मा" या "क्लोमास्मा" भी कहा जाता है।

मेलास्मा के संकेतों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

  • काले धब्बे: चेहरे और गर्दन की त्वचा पर गहरे रंग के धब्बे होने शुरू हो जाते हैं। ये धब्बे सामान्यतया ब्राउन, ग्रे या ब्लैक होते हैं। ये धब्बे सामान्यतया बालों के समय या सूरज के प्रभाव में बढ़ जाते हैं।
  • हल्के गाढ़े रंग के दाग: त्वचा पर चहरे और गर्दन के अलावा अन्य भागों पर भी हल्के गाढ़े रंग के दाग हो सकते हैं। ये दाग सामान्यतया सफेद या गुलाबी त्वचा पर प्रकट होते हैं।
  • सूर्य के प्रभाव में बढ़ना: मेलास्मा के रोगी धूप या सूर्य के प्रभाव में रहने पर उनकी स्थिति बिगड़ सकती है। धूप में रहने से ये धब्बे और दाग अधिक प्रभावशाली हो सकते हैं।
  • जंक फूड और हार्मोनल परिवर्तन: अनुयायियों के लिए जंक फूड, तेल, मिठाई, कॉफ़ी, चाय, ब्राउनीज़, स्पाइसी और मसालेदार खाद्य पदार्थ आदि के सेवन से मेलास्मा के संकेत बढ़ सकते हैं। हार्मोनल परिवर्तन भी मेलास्मा के लिए एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।

मेलास्मा का उपचार त्वचा विशेषज्ञ द्वारा किया जाना चाहिए। वे आपके लिए सही उपाय और इलाज प्रदान कर सकते हैं। त्वचा संरक्षण, सूर्य से बचाव, सही आहार और स्किनकेयर रेजीम इत्यादि मेलास्मा के प्रबंधन में मददगार साबित हो सकते हैं।

 

मेलास्मा किसे होने की अधिक संभावना होती है?


मेलास्मा किसी भी उम्र और लिंग के लोगों में हो सकता है, लेकिन निम्नलिखित लोगों में इसकी होने की अधिक संभावना होती है:

  • महिलाएं: महिलाओं में मेलास्मा की संभावना पुरुषों की तुलना में अधिक होती है। यह गर्भावस्था, प्रेग्नेंसी, या हार्मोनल परिवर्तन के कारण हो सकता है।
  • गहरी त्वचा वाले लोग: गहरी त्वचा वाले लोगों में मेलास्मा की संभावना अधिक होती है। गहरी त्वचा में मेलानिन की मात्रा अधिक होती है, जो त्वचा के काले धब्बों के उत्पादन में मदद करती है।
  • संवेदनशील त्वचा: संवेदनशील त्वचा वाले लोगों में भी मेलास्मा की संभावना अधिक होती है। उनकी त्वचा धूप या अन्य वातावरणिक कारकों के प्रभाव में अधिक प्रतिक्रियाशील होती है।
  • आदिवासी या उत्तरी भूमध्यसागरीय उत्पीड़ित क्षेत्रों के निवासी: कुछ क्षेत्रों में जहां धूप के प्रभाव अधिक होता है और उच्च धातुओं की मात्रा पाई जाती है, वहां रहने वाले लोगों में मेलास्मा की संभावना अधिक होती है।

यदि आपको मेलास्मा के संकेत मिलते हैं तो त्वचा विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित होगा। वे आपकी त्वचा की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए आपको सही उपचार या प्रबंधन की सलाह देंगे।

 

आयुर्वेद के अनुसार मेलास्मा के कारक

 

आयुर्वेद में, मेलास्मा को "वार्ण्य" रोग के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसका मतलब होता है त्वचा के रंग को प्रभावित करने वाला रोग। आयुर्वेद में मेलास्मा के कारक निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • दोषित रक्त: दोषित रक्त मेलास्मा का मुख्य कारक माना जाता है। रक्त दोष संबंधित विकृतियों के कारण त्वचा पर धब्बे बन सकते हैं। रक्त शुद्धि और संतुलित करने के लिए प्रयोगी आयुर्वेदिक औषधियों और प्रयोगों का उपयोग किया जाता है।
  • अम्लता और पित्त: अम्लता (अधिक आम्ल) और पित्त के असंतुलन को भी मेलास्मा के कारक के रूप में देखा जाता है। इसलिए, प्रवृद्धि कर्मी आहार और पित्तशामक औषधियों का उपयोग किया जाता है।
  • मलाशय और मल संबंधी विकृतियाँ: मलाशय और मल संबंधी विकृतियाँ भी मेलास्मा के प्रकोप के लिए जिम्मेदार मानी जाती हैं। प्रवृद्धि कर्मी आहार और प्रवृद्धि नाशक औषधियों का उपयोग किया जाता है ताकि मलाशय की स्वच्छता बनाए रखी जा सके।
  • धूप और उष्णता: धूप और उष्णता मेलास्मा के लिए अधिक प्रभावशाली हो सकती हैं। आयुर्वेद में धूप से बचाव के लिए उपायों का सुझाव दिया जाता है और त्वचा की रक्षा के लिए उष्णता से परहेज करने की सलाह दी जाती है।

यदि आपको मेलास्मा के संकेत हैं, तो आपको एक प्रशिक्षित आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए जो आपकी त्वचा का परीक्षण करेगा और आपको उपयुक्त चिकित्सा प्रणाली और आहार-विहार का सुझाव देगा।

 

आयुर्वेद के अनुसार व्यंग (Vyanga) के प्रकार


व्यंग (Vyanga) आयुर्वेद में एक त्वचा विकार है जिसमें त्वचा का रंग अनुयायियों में अनियंत्रित रूप से बदल जाता है। यह रंग बदलने वाली बीमारी में से एक है और मेलास्मा भी इसी के अंतर्गत आता है। व्यंग के नीचे दिए गए प्रकार हो सकते हैं:

  • पृष्ठभेद (Vataja Vyanga): इस प्रकार में, वात दोष की प्रभावित त्वचा का रंग बदल जाता है। यह विकार त्वचा के सूखापन, क्षरण, तनाव और रुखापन के साथ जुड़ा हो सकता है।
  • पित्तज (Pittaja Vyanga): इस प्रकार में, पित्त दोष की प्रभावित त्वचा का रंग बदल जाता है। यह विकार त्वचा में जलन, उत्तेजना, ज्वर, शून्यता और गर्मी के साथ जुड़ा हो सकता है।
  • कफज (Kaphaja Vyanga): इस प्रकार में, कफ दोष की प्रभावित त्वचा का रंग बदल जाता है। यह विकार त्वचा में स्तंभन, तरलता, त्वचा की ग्लानि, जीवन्तता और शीतलता के साथ जुड़ा हो सकता है।

यहां यह ध्यान देने योग्य है कि व्यंग अनुयायियों में इन दोषों का संयोग भी हो सकता है, जिससे मिश्रित व्यंग (संयुक्त व्यंग) होता है। आपकी व्यंग प्रकृति और लक्षणों के आधार पर, आपको एक प्रशिक्षित आयुर्वेदिक विशेषज्ञ द्वारा योग्य चिकित्सा या प्रबंधन की सलाह दी जानी चाहिए।

 

 

 

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